आज १४ नवम्बर है, आज का दिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है. बाल दिवसवैसे तो लगभग सभी देशो में मनाया जाता है लेकिन अलग अलग देशों में अलग अलग दिन. भारत में यह पंडित जवाहर लाल नेहरु के जन्म दिन को ही बालदिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्हें बच्चे बहुत प्यारे लगते थे, उनका एक चित्र जिसमे वे अपनी कोट की जेब में गुलाब का फूल लिए रहते है बहुत ही प्रशिद्ध है. और बच्चे भी उन्हें प्यार से जवाहर चाचा कहकर बुलाते थे.
यहाँ पर बच्चो की बात हो रही है. बच्चो के साथ बचपन में जो व्यवहार किया जाता वही वो भी बड़े हो कर करते है और बचपन में जो संस्कार पड़ गए वह लगभग पत्थर की लकीर की तरह से दिमाग में बैठ जाते है इसीलिये बच्चो को जहा पर कोई बुराई हो वहा से दूर रखा जाता है.
उन्हें बुरी संगत में आने से बचाया जाता है, सस्थ हे यह भी सच है जिसे जो बनना होता है वह वही बनता है लेकिन अपनी तरफ से किये गए प्रयाश में कोई बुराई नहीं होती है, क्योकि ऐसा करने से मन में कोई अफसोश नहीं रहता है.
अक्षर ऐसा सुनने में आता है की आजकल बच्चे जल्दी ही बड़े हो जाते है यह बात भी सही है क्योकि इन्हें हर वास्तु बचपन में मिल जाती है. घर पर टीवी है, चैनल है, और कौन हमेशा बच्चो के पीछे लगा रहता है कहा जा रहे है, किससे मिल रहे है और क्या कर रहे हैं.
मानव स्वाभाव का एक गुण है की वह बुरी चीजो को जल्दी ही देख लेता है और उन्हें सीख भी लेता है और अच्छी चीजे अक्शर नजर अन्द्दाज हो जाती हैं.
बचपन में जितनी जिज्ञाषा नयी चीजो के प्रति रहती है उतनी बाद में कभी नहीं. कुछ बच्चे जिन्हें गरीबी की वजह या फिर सौतेले माता पिता की वजह से हो उनमे संकुचितता की भावना पैदा हो जाती है और कुछ बच्चो को कुछ अधिक ही लाड प्यार मिल जाता है जो की समाज और घर दोनों के लिए हानिकारक होता है. संकुचितता की भावना अभाव की वजह से अक्शर आती है.
हमारे विनोबा भावे का कहना था की बच्चे भगवान का रूप हैं जब तक पृथ्वी पर बच्चे पैदा होते रहेंगे तब तक भगवान हमसे नहीं रूठा है.
कुछ माँ बाप जिन्हें बच्चे होते है वे बच्चो की वजह से इतना परेश्हन हो जाते है की उन्हें यह कहना पड़ जाता है की बच्चे न होते तो अच्छा होता. और कुछ माँ बाप जो संतान विहीन है उनकी यह लालशा होती है कोई उनके घर में भी हो जो उन्हें परशान करे, घर में समान और खिलोने तोड़े, यही सब तो बच्चो के होने का सुख होता है.
जितने भी छोटे बच्चे होते है जो ठीक से बोल नहीं सकते है उनमे बहुत ही अधिक मासूमियत होती है खाश कर के उनकी आँखों में लेकिन जल्दी ही यह मासूमियत शरारत में बदल जाती है.
हमारे देश में अभी भी ऐसे बहुत से बच्चे है जो की अपने अधिकार से वंचित हैं, बच्चे तो पढ़ते और खेलते कूदते ही अच्छे लगते है लेकिन उन्हें पता भी नहीं चलता है की खेलना और पढ़ना क्या होता है.
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