महीना: सितम्बर 2008

आज का हमारा जीवन

आज का हमारा जीवन
एक तरफ़ भविष्य की चिंता
दूसरी तरफ़ हमारी कुंठा

आज का हमारा जीवन
अब जो भी है
जो भी चल रहा है
बन गया है अभ्यस्त उसका
नही करता किसी का प्रतिरोध
लेता है स्वीकार
जिस ढंग से जो भी होता है

आज का हमारा जीवन
एक तरफ़ तो सपना कही पलता है
दूसरी तरफ़ देता है थपेड़े
लाकर पटक देता है किनारे पर

आज का हमारा जीवन
भयाक्रांत रहता है मन
अपने स्थान को लेकर
शंकाशील रहता है मन
लेकिन अभी भी बदलता है
करवटें सोते हुए
लोग जान जाते हैं
और हम ख़ुद ही
नही जान पाते

मुझ पर हावी हो जाते जब …

मुझ पर हावी हो जाते
जब मेरे ही कुछ सपने
मुझसे ही राज छिपाते
जब मेरे कुछ अपने
समस्याएं जब सुलझ सुलझ
भी कही उलझ जाती
जब मेरी ही विचारधाराये
आपस में टकराती
जब मै थक जाता खोज खोज खुद्को
और मै उन्ही रास्तों पर बार बार जाता
और लौट लौट आता
बार बार खुद्को समझाता
बार बार गलतियाँ दोहराता
कैसी कैसी बातों से खुद्को जोड़ता
कैसी कैसी चीजों से सम्बन्ध बनाता
अब मै समझ गया यह सब बिल्कुल प्राकृतिक है

मेरे मन

मन तुझे खुली छूट है
उदास होने के लिए,
आंसू बहा – बहा रोने के लिए
तू चाहे तड़पना अगर
तो तड़प जी भरकर
मुक्ति नही यदि तुझे कोई
बंधन ही पसंद है
तो बंधा रह मेरे मन
यदि तू जलकर राख होना चाहता है
तो तू हो जा मेरे मन
मै मना नही करूंगा
मेरे मन तू मुक्त है
अपनी इच्छनुसार कुछ भी करने के लिए
कभी जब मै अपने प्राणों को धरूँगा
तो तू खुस रहेना ही
और मुक्त रहेना
हमेशा की तरह
और जीवित रहेना ही मेरे बाद भी.


यह कविता पहेले भी कुछ जगहों पर मै प्रकाशित कर चुका हूँ

जब सांसे बन जाती हैं हंफरी

जब सांसे बन जाती हैं हंफरी
सोचता हूँ कर लूँ दो दो हाँथ
अपने सामने खड़े पहलवान से
पर पास जाते ही छटक कर दूर गिरता हूँ
और वह ललकारता है मुझे
अपनी विशाल बांहे फैलाकर
और लपकता है मेरी ओर
और मै भागता हूँ पलटकर पीछे
कमजोर नही हूँ मै भी
पर डर लगता है
उसकी ललकार से
डर लगता है
उसके चर्चे से
डर लगता है
उसकी विशाल काया से
और कभी जोर लगा आँखे मूँद कूदता भी हूँ
तो फिर से छटक कर दूर जा गिरता हूँ
डर लगता है
कहीं मेरा टाइम आउट न हो जाए.

कुल्हाड़ी का होना बहुत जरुरी है

कुल्हाड़ी का होना बहुत जरुरी है
बहुत काम आती है
बहुत से कामो में
पर अपने पैर पर पड़े या किसी और के
नुकसान उतना ही पहुचाती है

कभी चल जाती है कुल्हाड़ी रिश्तों पर भी
कभी चलानी पड़ती है ख़ुद से  ही ख़ुद के पैर पर
कभी चलानी पड़ती है पत्थर या लोहे पर भी
जहा धार मुड़ जाती है इसकी
कभी छिपानी भी पड़ती है इसे लोगों से
कभी दिखानी भी पड़ती है लोगों को कुल्हाड़ी

कुल्हाड़ी  का होना बहुत जरुरी है
क्योंकि हमारे समाज में इसका सबसे अधिक उपयोग
लकड़ी काटने के लिए होता है